असली मित्र एक व्यक्ति था, उसके तीन मित्र थे। एक ऐसा जिससे वह प्रतिदिन मिलता था। दूसरा ऐसा था जिसे वह प्यार करता था अवश्य, पर मिलता था एक दो सप्ताह में। और तीसरा ऐसा था जिसे वह महीनों के बाद कभी-कभी मिलता था।
एक बार इस व्यक्ति पर मुकदमा बन गया। वकील ने कहा मुकदमा बहुत सख्त है। तो ऐसा गवाह तैयार करो जो कहे कि तुम्हें जानता है और तुम पर लगे आरोप को गलत समझता है। वह व्यक्ति अपने पहले मित्र के पास गया। बोला-एक मुकदमा बन गया है मेरे ऊपर, तुम चलकर मेरे पक्ष में गवाही दो।
मित्र ने कहा देखो भाई तुम्हारी मेरी मित्रता अवश्य है, लेकिन गवाही देने के लिए मैं तुम्हारे साथ एक पग भी नहीं जा सकता। यह व्यक्ति बहुत निराश हुआ, दुखी भी हुआ। तभी उसे दूसरे मित्र का विचार आया। उसके पास जाकर गवाही देने के लिए कहा। ये मित्र बोला- मैं तुम्हारे साथ कचहरी के द्वार तक तो चल सकता हूँ लेकिन गवाही नहीं दूंगा।
ये फिर दुखी हुआ। फिर उसे अपने तीसरे मित्र का ख्याल आया जिसे वह महीनों बाद थोड़ी देर के लिए मिलता था। उसे अपनी बात कही। तीसरे मित्र ने जोश के |साथ कहा- मैं चलूंगा तेरे साथ, तेरे पक्ष में गवाही दूंगा और मेरा दावा है कि यह मुकदमा समाप्त हो जाएगा, तू बरी हो जाएगा। |
परन्तु वह मित्र कौन है? वह है आत्मा। पहला मित्र है-धन, संपत्ति, भवन, भूमि जिन्हें मनुष्य अपना समझता है। और जिनके लिए रातदिन हर समय चिंता करता है। दूसरा मित्र है ये सम्बन्धी, रिश्तेदार, पत्नी, बच्चे, भाई, बहन जिनके लिए मनुष्य प्रत्येक कष्ट उठाता है। तीसरा मित्र है प्रभु-प्रेम और शुभ कर्म, जो प्रभु |प्रेम के कारण किए जाते हैं। भीतरी बात-गहरी बात-दोस्त वो नहीं होते जो रोने पर आते हैं I
दोस्त वो होते हैं जो रोने ही नहीं देते।
Leave a Reply