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आप फ्यूज बल्ब ही तो‌ हैं‌।You are just fused bulb

clear light bulb

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नवाबों के शहर लखनऊ में नई बसे उपनगर गोमती नगर में एक बड़े अफसर रहने के लिए आए, जो हाल ही में सेवानिवृत्त हुए थे।‌ ये बड़े वाले रिटायर्ड अफसर, हैरान परेशान से, रोज शाम को पास के पार्क में टहलते हुए, अन्य लोगों को तिरस्कार भरी नज़रों से देखते और किसी से भी बात नहीं करते थे।

एक दिन एक बुज़ुर्ग के पास शाम को गुफ़्तगू के लिए बैठे और फिर लगातार बैठने लगे। उनकी वार्ता का विषय एक ही होता था – मैं इतना बड़ा अफ़सर था कि पूछो मत, यहां तो मैं मजबूरी में आ गया हूं, मुझे तो दिल्ली में बसना चाहिए था। और वो बुजुर्ग शांतिपूर्वक उनकी बातें सुना करते थे।

एक दिन जब सेवानिवृत्त अफसर की आंखों में कुछ प्रश्न, कुछ जिज्ञासा दिखी, तो बुजुर्ग ने ज्ञान दे ही डाला, उन्होंने समझाया – आपने कभी फ्यूज बल्ब देखे हैं ? बल्ब के फ्यूज हो जाने के बाद क्या कोई देखता है‌ कि‌ बल्ब‌ किस कम्पनी का बना‌ हुआ था, कितने वाट का था, उससे कितनी रोशनी या जगमगाहट होती थी ?

बल्ब के‌ फ्यूज़ होने के बाद इनमें‌‌ से कोई भी‌ बात बिलकुल ही मायने नहीं रखती। लोग ऐसे‌ बल्ब को‌ कबाड़‌ में डाल देते‌ हैं। है‌ कि नहीं ?

जब उन रिटायर्ड‌ अधिकारी महोदय ने सहमति‌ में सिर‌ हिलाया,‌ तो‌ बुजुर्ग बोले‌ – रिटायरमेंट के बाद हम सब की स्थिति भी फ्यूज बल्ब जैसी हो‌ जाती है‌। हम‌ कहां‌ काम करते थे‌, कितने‌ बड़े‌/छोटे पद पर थे‌, हमारा क्या रुतबा‌ था,‌ यह‌ सब‌ कुछ भी कोई मायने‌ नहीं‌ रखता‌।

कुछ देर की शांति के बाद अपनी बात जारी रखते‌ हुए फिर वो बुजुर्ग‌ बोले कि मैं सोसाइटी में पिछले कई वर्षों से रहता हूं और आज तक किसी को यह नहीं बताया कि मैं दो बार संसद सदस्य रह चुका हूं। वो जो सामने वर्मा जी बैठे हैं, रेलवे के महाप्रबंधक थे। वे सामने से आ रहे सिंह साहब सेना में ब्रिगेडियर थे। वो मेहरा जी इसरो में चीफ थे। ये बात भी उन्होंने किसी को नहीं बताई है, मुझे भी नहीं, पर मैं जानता हूं।

सारे फ्यूज़ बल्ब करीब – करीब एक जैसे ही हो जाते हैं, चाहे जीरो वाट का हो 40, 60, 100 वाट, हेलोजन या फ्लड-लाइट का हो‌, कोई रोशनी नहीं‌, कोई उपयोगिता नहीं, यह बात आप जिस दिन समझ लेंगे, आप शांतिपूर्ण तरीके से समाज में रह सकेंगे।

उगते सूर्य को जल चढ़ा कर सभी पूजा करते हैं। पर, डूबते सूरज की कोई पूजा नहीं‌ करता‌। यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाएगी, उतनी जल्दी जिन्दगी आसान हो जाएगी।

कुछ लोग अपने पद को लेकर इतने वहम में होते‌ हैं‌ कि‌ रिटायरमेंट के बाद भी‌ उनसे‌ अपने अच्छे‌ दिन भुलाए नहीं भूलते। वे अपने घर के आगे‌ नेम प्लेट लगाते‌ हैं – सक्सेना/ गुर्जर/ मीणा/ गुप्ता/ मेघवाल/ चौधरी, तिवारी, रिटायर्ड आइएएस‌…… सिंह …… रिटायर्ड जज‌ आदि – आदि।

ये‌ रिटायर्ड IAS/RAS/SDM/तहसीलदार/ पटवारी/ बाबू/ प्रोफेसर/ प्रिंसिपल/ अध्यापक कौन-सा‌ पोस्ट होता है भाई ???? माना‌ कि‌ आप बहुत बड़े‌ आफिसर थे‌, बहुत काबिल भी थे‌, पूरे महकमे में आपकी तूती बोलती‌ थी‌ पर अब क्या? अब तो‌ आप फ्यूज बल्ब ही तो‌ हैं‌। यह बात कोई मायने‌ नहीं रखती‌ कि‌ आप किस विभाग में थे‌, कितने‌ बड़े‌ पद पर थे‌, कितने‌ मेडल‌ आपने‌ जीते‌ हैं‌।

अगर‌ कोई बात मायने‌ रखती है‌ तो वह‌ यह है कि आप इंसान कैसे‌ है‌, आपने‌ कितनी जिन्दगी‌ को छुआ है, आपने आम लोगों को कितनी तवज्जो दी, पद पर रहते हुए कितनी मदद की, समाज को क्या दिया

हमेशा याद रखिए, बड़ा अधिकारी‌/कर्मचारी बनना बड़ी बात नहीं‌, बड़ा‌ इंसान‌ बनना‌ बड़ी‌ बात जरूर है। इस लिए अच्छे इंसान बनिए और कुढ़ना बंद कीजिए, जिंदगी संवर जाएगी|

Source: YouTube

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